Tuesday, April 7, 2009

जूते की राजनीति या राजनीति का जूता

अदना से जूते ने पूरे देश में उथल-पुथल मचा रखी है.अभी तक दुनिया में दो ही लोगों के जूतों की सबसे ज्यादा चर्चा होती थी.मरहूम फिल्मकार राजकपूर को जापानी जूता बहुत पसंद था, तभी तो वे गाते थे- मेरा जूता है जापानी......और उनके साथ लोग भी झूम-झूम कर ये गाना गाते थे. दूसरा, इराकी पत्रकार मुंतजिर अल जैदी का जूता भी बड़ा फेमस हुआ, जो उसने अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश पर फेंका था.मुंतजिर के इस जूते की चर्चा पूरी दुनिया में हुयी.इराक में तो मुंतजिर की डिजाईन के जूते घरों में शोपीस के रूप में सज गए. लेकिन आज हमारे देश के जूते ने भी ख्याति अर्जित कर ली.ये जूता है भारतीय पत्रकार जरनैल सिंह का.टीवी चैनलों पर जरनैल सिंह का जूता तो लाखों-करोडों के विज्ञापन करने वाले एडीडास और रीबोक के जूतों से भी ज्यादा छाया हुआ है.जब से ये खबर आयी है कि दैनिक जागरण के पत्रकार जरनैल सिंह ने सीबीआई द्वारा जगदीश टायटलर को ८४ के सिख दंगो में क्लीन चिट दिए जाने से नाराज होकर गृह मंत्री पी. चिदंबरम पर जूता फेंका है , तब से लोग ये जानने के लिए बेचैन है कि जरनैल ने किस कंपनी का जूता पहन रखा था ? उसके जूते की डिजाईन कैसी थी ? उसके जूते का नंबर क्या था ?शायद वे भी उसी कंपनी, उसी डिजाईन और उसी नंबर का जूता पहन कर अपने आक्रोश को व्यक्त करने का प्रयास करना चाहते हों.

आज के पहले मैंने कभी भी अपने जूतों को इतने से ध्यान से नहीं देखा. सुबह जब मैं घर से निकलने को हुआ तो मैंने रोज की तरह काफी मजबूती से अपने जूते की लेस बांधी.जूता पहनते समय अमूमन ये डर बना रहता है कि यदि लेस ठीक से नहीं बांधी तो वो खुल जायेगी और पैर में अटकने से गिरने का खतरा हो सकता है.इसीलिए मैं तो अपने जूते की लेस बड़ी मजबूती से बांधता हूँ.आज के पहले कभी ये ख्याल भी नहीं आया कि जूतों का यूँ राजनीतिक इस्तेमाल भी हो सकता है.अकाली दल वाले उसे टिकट देने की घोषणा कर रहे है तो शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने दो लाख का इनाम दे दिया है. जरनैल सिंह के जूतों ने बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया है.चिदंबरम पर जूता फेंकने की खबर मिलते ही मेरी नजर सबसे पहले मेरे जूतों पर गयी, जो अक्सर मेरे पैरों में बंधे रहते है या यूँ कहे कि मेरे पैरों को बांधे रखते है.समाज में इतनी कमियां और बुराइयाँ है, जो आप-हम , सब को हमेशा उद्वेलित करती है.भ्रष्ट नेताओं और अफसरों को हमेशा जूता मारने का मन करता है लेकिन हमारे पैरों में मजबूती से बंधा या पैरों को मजबूती से बांध कर रखने वाला जूता कभी नहीं उतरा.मर्यादा जूते की नहीं हमारी अपनी है.हम भी रोज किसी पर जूता उछाल सकते है लेकिन उससे हासिल क्या होगा ?शायद अब जरनैल सिंह को भी पश्चाताप हो रहा होगा,यदि उनका मिशन कुछ और नहीं है तो........

एक बात और.....जरनैल सिंह के जूते की प्रसिद्धि अब यहीं रूक जानी चाहिए.ये जूता सिर्फ चिदंबरम या कांग्रेस के गाल पर नहीं पड़ा है बल्कि इसने हमारी पूरी व्यवस्था पर चोट की है.ये भी उतनी कड़वी सच्चाई है कि सीबीआई और सरकारें 25 साल बाद भी सिखों के नरसंहार के आरोपियों को आज तक सजा नहीं दिला पायीं.इसलिए सिखों के मन में गुस्सा होना स्वाभाविक है.लेकिन हमारे देश औए समाज में गुस्से का जरनैल के अंदाज वाला इजहार भी मंजूर नहीं है.

3 comments:

बाल भवन जबलपुर said...

har dour men isaka hee bol bala
kabhee iraqi kabhee indian kabhee
japan wala

श्यामल सुमन said...

कब जूता फिर चल पड़े किसके होंगे गाल।
बड़े बड़े अब लोग भी पूछे यही सवाल।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Gopal Awasthi said...

youe blog ending is realy very good. you rase the problem and give the mass opinion. again salam for your skill.