Sunday, April 12, 2009

उनके लिए तो गाली है ....'' जय हो ''

कांग्रेस का चुनावी गीत - '' जय हो .......'' मध्य प्रदेश के उन गरीब आदिवासियों और पिछडे तबके के लोगों को किसी गाली से कम नहीं लग रहा है , जिन्होंने कथित विकास के लिए अपना सब कुछ गँवा दिया और वे खुद आज तक विकास से महरूम है.इस प्रदेश की जीवन रेखा कही जाने वाली नर्मदा में बने बरगी बांध के डूब क्षेत्र के हजारों परिवारों को 1990 में अपने घर-द्वार, खेती-बाड़ी, बाग-बगीचे गंवाने पड़े लेकिन इन 19 सालों में उन्होंने गरीबी और मुफलिसी के सिवाय कुछ नहीं देखा.आज अधिकांश विस्थापित गांवों के लोगों को न तो रोजगार गारंटी स्कीम का लाभ मिल रहा है और न ही वे किसी अन्य सरकारी योजना के हक़दार है.उनका कसूर सिर्फ इतना है कि वे अपने घर डूबने के बाद जहाँ बसे वह वन क्षेत्र है.

कांग्रेस का दावा है कि उसने रोजगार गारंटी स्कीम शुरू करके गरीबों को उनके गाँव में ही सौ दिन का रोजगार मुहैया कराया है.आजकल टीवी चैनलों में आस्कर विजेता गीत '' जय हो '' के माध्यम से इसका जोर-शोर से प्रचार भी किया जा रहा है ताकि कांग्रेस को वोट हासिल हो सके.लेकिन रोजगार गारंटी स्कीम मध्य प्रदेश के जबलपुर, मंडला और सिवनी जिले के एक सैकडा गांवों के लिए सिर्फ छलावा है.ये गांव उन गरीब आदिवासियों और पिछडे लोगों के है, जो बरगी बांध बनने के साथ ही विस्थापित हो गए.1990 में जब बांध में पहली बार पानी भरा गया तो उनका आशियाना उजड़ गया और उन्हें जहाँ जगह मिली अपना नया घरौंदा बना लिया.किन्तु उन्हें नहीं मालूम था कि जहाँ वे अपना नया घरौंदा बना रहे है ,वह वन क्षेत्र है.

यूँ तो बरगी बांध के विस्थापितों के सरकारी शोषण और उत्पीडन के किस्से कोर्ट - कचहरी के चक्कर में शहर आने वाले नर्मदा बचाओ आन्दोलन से जुड़े लोगों के मुंह से अक्सर सुनने को मिलते थे लेकिन उनकी वास्तविक हालत देखने का मौका पिछले दिनों उस वक्त मिला, जब नर्मदा में गिरे एक विमान की खोजबीन की कवरेज़ के लिए डूब क्षेत्र के गाँव गाडाघाट पहुंचा.इलाके से बखूबी परिचित नर्मदा बचाओ आन्दोलन के राजकुमार सिन्हा को भी मदद के लिए साथ में ले लिया.बातचीत के दौरान पहले तो राजकुमार सिन्हा ने ही विस्थापितों के दर्द से अवगत कराया.बाद में जब गाँव पहुचे तो हकीकत और भी कड़वी लगी.यहाँ न तो पक्की सड़कें मिली और न ही स्कूल भवन. जबलपुर से 70 किलोमीटर दूर डूब क्षेत्र के गाँव गाडाघाट में हर जाति और बिरादरी के लोग रहते है.लेकिन रोजगार सबका एक ही है, बरगी बांध के जलग्रहण क्षेत्र में मछली पकड़ना.गर्मी के दिनों में जरूर कुछ लोग पानी कम होने पर नर्मदा कछार के क्षेत्र में थोडी बहुत खेती कर लेते है.एक बात और बता दें, न तो वहां जय हो ......... की गूँज है और न ही भय हो .........की.

बरगी बांध बनाने से जबलपुर , मंडला और सिवनी के 165 गाँव डूब क्षेत्र में आ गए.इनके घर - द्वार के साथ हजारों हेक्टेयर कृषि भूमि भी नर्मदा के अथाह जल में समा गयी.डूब क्षेत्र के गरीब परिवारों के लिए न तो उचित बसाहट का इंतेजाम किया गया और न ही उन्हें रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये गए. डूब क्षेत्र के अधिकांश गांवों के लोग मजबूरी में आस-पास की वन भूमि में बस गए.अब सरकारी नियम - कानून इन गरीबों के व्यक्तिगत और सामुदायिक विकास में बाधक बन रहे है.'' जय हो ......'' गीत के माध्यम से रोजगार गारंटी स्कीम का ढिंढोरा पीटने वाली कांग्रेस सरकार आज तक उस कानून में संशोधन नहीं कर सकी जो वन ग्राम में बसे होने के कारण इन गरीब आदिवासियों और पिछडे तबके के लोगों को सरकारी योजनाओं से महरूम रखे हुए है.

नर्मदा बचाओ आन्दोलन से जुड़े राजकुमार सिन्हा का कहना है- वन संरक्षण कानून वन क्षेत्र में किसी भी तरह के निर्माण की इजाजत नहीं देता है.बरगी बांध के डूब क्षेत्र के अधिकांश गांवों में रोजगार गारंटी स्कीम लागू नहीं है.यहाँ इंदिरा आवास योजना के तहत् गरीबों के लिए मकान नहीं बन सकते.न ही स्कूल भवन बन सकता है और न ही सामुदायिक केंद्र.जबलपुर की बगदरी गाँव की पंचायत ने बच्चों के लिए स्कूल भवन क्या बना लिया, उसके चुने हुए पदाधिकारियों के खिलाफ सरकारी जाँच शुरू हो गयी.इन गांवों में रोजगार का सिर्फ एक साधन है मछली पकड़ना.बच्चे-बूढे, महिला-पुरुष सब सुबह से मछली पकड़ने नर्मदा में उतर जाते है.लेकिन अब बांध में मछलियाँ भी कम हो गयी है.लिहाजा गाँव वालों को मजदूरी के लिए शहर भागना पड़ रहा है.वैसे उन्हें मछली का दम भी बेहद कम मिलता है.जो मछली बाजार में 100 रुपये प्रति किलो बिकती है, उसका दाम इन मछुआरों को सिर्फ १८ रुपये मिलता है.

बरगी बांध के डूब क्षेत्र में आने वाले लोगों को अपने घर-खेत जाने का बड़ा गम है.जो कभी गाँव के मालगुजार ( छोटे जमींदार ) होते थे, वे आज जबलपुर जैसे शहर में सायकिल रिक्शा चला कर अपना और परिवार का गुजारा कर रहे है.उनके पास गाँव में न तो घर रहा और ना ही रोजगार का साधन.जमीन और मकान के बदले सरकार ने जो मुआवजा दिया वह इतना थोडा था कि नई जगह पर नए जीवन की शुरुआत बेहद कठिन थी. मेघा पाटकर सरीखी जीवट महिलाओं ने नर्मदा बचाओ आन्दोलन शुरू किया, लम्बी लडाई लड़ी तब जाकर डूब क्षेत्र के आदिवासियों और गरीब परिवारों के शोषण में कुछ कमी आयी.उन्हें बांध की मछली पर अधिकार मिला और उनकी आजीविका चल पड़ी.लेकिन कांग्रेस या दीगर सरकारें कितना भी दावा करें कि वे गरीब हितैषी है,उसमे तनिक भी सच्चाई नहीं है.

Tuesday, April 7, 2009

जूते की राजनीति या राजनीति का जूता

अदना से जूते ने पूरे देश में उथल-पुथल मचा रखी है.अभी तक दुनिया में दो ही लोगों के जूतों की सबसे ज्यादा चर्चा होती थी.मरहूम फिल्मकार राजकपूर को जापानी जूता बहुत पसंद था, तभी तो वे गाते थे- मेरा जूता है जापानी......और उनके साथ लोग भी झूम-झूम कर ये गाना गाते थे. दूसरा, इराकी पत्रकार मुंतजिर अल जैदी का जूता भी बड़ा फेमस हुआ, जो उसने अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश पर फेंका था.मुंतजिर के इस जूते की चर्चा पूरी दुनिया में हुयी.इराक में तो मुंतजिर की डिजाईन के जूते घरों में शोपीस के रूप में सज गए. लेकिन आज हमारे देश के जूते ने भी ख्याति अर्जित कर ली.ये जूता है भारतीय पत्रकार जरनैल सिंह का.टीवी चैनलों पर जरनैल सिंह का जूता तो लाखों-करोडों के विज्ञापन करने वाले एडीडास और रीबोक के जूतों से भी ज्यादा छाया हुआ है.जब से ये खबर आयी है कि दैनिक जागरण के पत्रकार जरनैल सिंह ने सीबीआई द्वारा जगदीश टायटलर को ८४ के सिख दंगो में क्लीन चिट दिए जाने से नाराज होकर गृह मंत्री पी. चिदंबरम पर जूता फेंका है , तब से लोग ये जानने के लिए बेचैन है कि जरनैल ने किस कंपनी का जूता पहन रखा था ? उसके जूते की डिजाईन कैसी थी ? उसके जूते का नंबर क्या था ?शायद वे भी उसी कंपनी, उसी डिजाईन और उसी नंबर का जूता पहन कर अपने आक्रोश को व्यक्त करने का प्रयास करना चाहते हों.

आज के पहले मैंने कभी भी अपने जूतों को इतने से ध्यान से नहीं देखा. सुबह जब मैं घर से निकलने को हुआ तो मैंने रोज की तरह काफी मजबूती से अपने जूते की लेस बांधी.जूता पहनते समय अमूमन ये डर बना रहता है कि यदि लेस ठीक से नहीं बांधी तो वो खुल जायेगी और पैर में अटकने से गिरने का खतरा हो सकता है.इसीलिए मैं तो अपने जूते की लेस बड़ी मजबूती से बांधता हूँ.आज के पहले कभी ये ख्याल भी नहीं आया कि जूतों का यूँ राजनीतिक इस्तेमाल भी हो सकता है.अकाली दल वाले उसे टिकट देने की घोषणा कर रहे है तो शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने दो लाख का इनाम दे दिया है. जरनैल सिंह के जूतों ने बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया है.चिदंबरम पर जूता फेंकने की खबर मिलते ही मेरी नजर सबसे पहले मेरे जूतों पर गयी, जो अक्सर मेरे पैरों में बंधे रहते है या यूँ कहे कि मेरे पैरों को बांधे रखते है.समाज में इतनी कमियां और बुराइयाँ है, जो आप-हम , सब को हमेशा उद्वेलित करती है.भ्रष्ट नेताओं और अफसरों को हमेशा जूता मारने का मन करता है लेकिन हमारे पैरों में मजबूती से बंधा या पैरों को मजबूती से बांध कर रखने वाला जूता कभी नहीं उतरा.मर्यादा जूते की नहीं हमारी अपनी है.हम भी रोज किसी पर जूता उछाल सकते है लेकिन उससे हासिल क्या होगा ?शायद अब जरनैल सिंह को भी पश्चाताप हो रहा होगा,यदि उनका मिशन कुछ और नहीं है तो........

एक बात और.....जरनैल सिंह के जूते की प्रसिद्धि अब यहीं रूक जानी चाहिए.ये जूता सिर्फ चिदंबरम या कांग्रेस के गाल पर नहीं पड़ा है बल्कि इसने हमारी पूरी व्यवस्था पर चोट की है.ये भी उतनी कड़वी सच्चाई है कि सीबीआई और सरकारें 25 साल बाद भी सिखों के नरसंहार के आरोपियों को आज तक सजा नहीं दिला पायीं.इसलिए सिखों के मन में गुस्सा होना स्वाभाविक है.लेकिन हमारे देश औए समाज में गुस्से का जरनैल के अंदाज वाला इजहार भी मंजूर नहीं है.

पीपल बाबा की नई कोपलें

आज सुबह रोज की भांति अख़बारों पर नजर डाल रहा था......नईदुनिया की एक खबर पर नजर अपने आप अटक गयी.इस खबर ने दिल को बड़ा सुकून दिया.खबर थी कि 17 मार्च को करमचंद चौक से श्रीनाथ की तलैया में स्थानांतरित किये गए डेढ़ सौ साल के बूढे पीपल बाबा के शरीर से नई कोपलें फूट पड़ी है. पीपल बाबा को नई जगह रास आ गयी और उनके बूढे शरीर ने फिर से ताजगी का अहसास किया है.मुझे तो पक्का यकीन है कि बूढे पीपल बाबा की कहानी जरूर भगवान ने भी पढ़ी होगी. और पीपल बाबा में नई जान डाल कर उसने भी मनुष्यों के प्रयासों को व्यर्थ नहीं जाने दिया.अब ये निश्चित मानिये कई पीपल बाबा जैसे कई दरख्त कटाने की बजे नई जगह पर खुद भी नई सांसे लेंगे और मनुष्यों को भी नई सांसे देंगे..... मनुष्य वाकई धन्यवाद का पात्र है.

Wednesday, April 1, 2009

वाह री किस्मत

पिछले दिनों मैंने आपको नेशनल टीवी के हम जैसे पत्रकारों का दुखडा सुनाया था कि जबलपुर से किसी सेलिब्रिटी के चुनाव न लड़ने से हम लोगों का बड़ा नुकसान होने वाला है.लेकिन पता नहीं हमारे दुखी मन की पीड़ा भगवान ने कांग्रेसियों तक पहुंचाई या फिर कांग्रेसी खुद से ही हमारे दुःख को जान गए.प्रत्याशी न सही वे चुनाव प्रचार के लिए फिल्म स्टार तो ले ही आये.इससे क्या फर्क पड़ता है कि ये फिल्म स्टार हीरो थे या विलेन.बल्कि हम तो ये कहेंगे कि यदि हीरो या हीरोईन होती तो एक ही खबर बिकती.वो तो भला हो शक्ति कपूर और किरण कुमार का.उन्होंने एक नहीं दो खबरें बिकवा दी.वे ठहरे विलेन सो उन्होंने हरकत भी वैसी ही कर दी.कांग्रेस का प्रचार करने जबलपुर आये शक्ति कपूर गाँधी जी के चित्र वाली टी शर्ट पहिन कर सिगरेट के कश पे कश उडाते रहे.हम पत्रकारों की नजर होती बड़ी तेज है.तत्काल कैमरों ने शक्ति कपूर को उसी अवस्था में कैद कर लिया और खबर भेज दी चैनल को.....चैनल वालों ने भी खबर को तत्काल लपक लिया.अधिकांश चैनलों ने इस खबर को चलाया.बीजेपी वालों को शक्ति कपूर और किरण कुमार का रोड़ शो बर्दाश्त नहीं हुआ.उन्होंने शिकायत कर दी कि ये रोड़ शो बिना अनुमति के हुआ है.लो भैया....दूसरी खबर भी बेचने का जुगाड़ हो गया.इधर जिला निर्वाचन अधिकारी ने शक्ति कपूर और किरण कुमार के खिलाफ आचार संहिता के उल्लंघन का मामला दर्ज किया, उधर हम लोगों ने झट से प्रशासन की बाईट लेकर दूसरी खबर भी भेज दी.इसे कहते है.....वाह री किस्मत.