Monday, June 14, 2010

हाय ये मौन

ये सवाल आज हर भारतीय के मन में कौंध रहा है कि क्या मजबूरी थी......... वारेन एंडरसन को देश से भगाने के पीछे........ कौन इसके लिए जिम्मेदार है........और क्यों नहीं मुंह खोल रहे है भारतीय राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले अर्जुन सिंह.......यह मौन क्यों.......क्या पंद्रह हजार से ज्यादा निरीह लोगों की मौत और उनके परिवारों की चीख भी उनके अंतःकरण में खलबली नहीं मचा रही है या फिर यह मौन ही उनके अपराध को छिपाने का हथियार है.
खैर अर्जुन सिंह से तो बहुत से लोग ये जवाब मांग रहे है.....हमें जब पता चला कि वारेन एंडरसन को सरकारी गाड़ी में व्हीआईपी मेहमान बनाकर एअरपोर्ट तक ले जाने वाले भोपाल के तब के पुलिस कप्तान स्वराज पुरी इन दिनों जबलपुर में ही है तो हमारे मन में भी ये सवाल उठने लगा कि किसके आदेश पर तब के कलेक्टर मोती सिंह को लेकर स्वराज पुरी एंडरसन को लेकर एअरपोर्ट दौड़ पड़े थे........हमने सोचा कि शायद इसका जवाब उनके पास जाने से मिल जाये......हालाँकि मौका ऐसा नहीं था कि भाई की मौत का शोक मना रहे किसी व्यक्ति के पास बीती बातों को कुरेदने के लिए इस तरह जाया जाये......लेकिन पंद्रह हजार मौतों के गुनेहगार को देश से भगाने के गुनाह में शरीक व्यक्ति से जवाब मांगने के लिए कोई भी अवसर जायज हो सकता है...... और यही सोच कर कुछ साथियों के साथ हम मन में कई अनसुलझे सवालों की सूची बना कर पहुँच गए स्वराज पुरी से मिलने......जैसी की उम्मीद थी भाई की मौत के बहाने से वे हमारे सवालों से बच जायेंगे......वही हुआ ......यहाँ भाई की मौत के बहाने धारण किये मौन को अपने अपराध को छिपाने का हथियार बना लिया गया.
इसी बीच ये भी पता चला कि तीन हजार मौतों की एफआईआर लिखने वाले हनुमानगंज थाने के तब के प्रभारी सुरेन्द्र सिंह भी जबलपुर के ही है......तो लगा क्यों न उन्ही से बात करके ये समझा जाये कि यूनियन कार्बाइड से गैस रिसने के बाद भोपाल के क्या हालात थे......लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए की उन्ही के थाने में दर्ज गैर जमानती अपराध में वारेन एंडरसन को सिर्फ पच्चीस हजार के निजी मुचलके पर जमानत दे दी गयी थी.......और उसको भगाने के अपराध में सुरेन्द्र सिंह भी शामिल है.........इस समय सागर में एस पी (अजाक) हो गए सुरेन्द्र सिंह की खोजबीन की गयी तो वे कहीं नहीं मिले.......न सागर में और न ही अपने गृह नगर जबलपुर में..... उनके मोबाईल बंद है और दफ्तर से बताया गया कि साहब एक हफ्ते की छुट्टी पर है......उनकी कोई लोकेशन भी नहीं मिल रही है......वे छुट्टी के बहाने मौन हो गए है.

1 comment:

Unknown said...

नमस्ते,

आपका बलोग पढकर अच्चा लगा । आपके चिट्ठों को इंडलि में शामिल करने से अन्य कयी चिट्ठाकारों के सम्पर्क में आने की सम्भावना ज़्यादा हैं । एक बार इंडलि देखने से आपको भी यकीन हो जायेगा ।