Saturday, March 21, 2009

धन्यवाद मनुष्य

मैं एक पीपल का दरख्त हूँ.लोग मुझे एक सौ पचास साल का बूढा बता रहे है.लेकिन सच कहूं तो मुझे भी मेरी सही उम्र नहीं मालूम क्योंकि हमारी दुनिया में मिनट, घंटे, दिन, हफ्ते और साल का कोई गणित आज तक नहीं बन सका है.मैं आजकल बड़ा इठला रहा हूँ. और कह रहा हूँ धन्यवाद मनुष्य. तुने अपनी सांसों का कर्ज उतार दिया है. एक दरख्त मनुष्य का धन्यवाद करे, ये बात बड़ी अटपटी लगती है लेकिन जब मैं आपको पूरी कहानी बताऊंगा तो आप भी कहेंगे कि मनुष्यों ने वाकई काबिले-तारीफ काम किया है.

मेरा ठिकाना जबलपुर के करमचंद चौक पर हुआ करता था.वैसे एक बात बताऊँ - इस जगह का करमचंद चौक नाम तो कुछ सालों पहले पड़ा वर्ना जब मैंने भूमि के भीतर से अंकुरण लेकर आसमान को छूने की असफल कोशिश की थी , तब यहाँ कुछ नहीं था.पथिक मेरी छाँव का सहारा लेकर सुस्ताते थे तो बच्चे मेरे पीछे आँख-मिचौली का खेल खेलते थे.सन ४७ के पहले मैंने आजादी के मतवालों का जोशो-जूनून भी देखा था कि कैसे वे अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए अपनी जान की बाजी तक लगाने को तैयार रहते थे.देश आजाद हुआ और मैंने भी देश के आम मनुष्यों की तरह आजादी की सुकून भरी हवा को महसूस किया.

आजादी के बाद विकास की बात चली तो मैंने भी आधे-अधूरे विकास को देखा और उसके दुष्परिणाम को भोगा.हवा-पानी के तूफ़ान और मनुष्यों की झूठी शान के बीच मैं सीना तान कर इसी करमचंद चौक पर खडा रहा.मेरी छाँव में एक मंदिर बन गया और सुबह - शाम देवताओं की पूजा होने लगी.पीपल का दरख्त था और मनुष्य मानते है कि पीपल में देवता वास करते है , सो मुझे भी पूजा जाने लगा.फिर क्या था घमंड के मारे मैं दिनों-दिन और चौड़ा होने लगा.अपनी किस्मत पर इसलिए भी गुमान करने लगा कि इस देश में सब कुछ किया जा सकता है लेकिन मंदिर-मस्जिद को कोई हाथ तक नहीं लगा सकता है,फिर भले ही वो सड़क में ही क्यों न बने हों.मेरी छाँव में बना मंदिर मेरी सुरक्षा की गारंटी बन गया था.


लेकिन एक दिन मेरा सारा गर्व और दंभ जाता रहा, जब मैंने देखा कि मेरी छाँव में बने मंदिर से देवी-देवता पूजा-पाठ के बाद रुख्सत हो रहे है.मेरे कानों तक भी ये आवाज पहुंची कि सड़क चौडी करने के लिए पीपल के इस दरख्त को काटना होगा.ये सुनते ही मनुष्यों को सांसे देने वाले मुझ बूढे दरख्त की सांसे उखड़ने लगी.लगा की अब कुछ ही दिन का मेहमान रह गया हूँ.मेरी भी नियति विकास के नाम पर कत्ले-आम किये गए बाकी दरख्तों की तरह ही होगी.शायद आप को पता ही होगा कि कभी ये धरती पूरी तरह से हरियाली की चादर ओढे हुए थी, किन्तु मनुष्यों ने हम वृक्षों के साथ विकास के नाम पर ऐसी दुश्मनी निकाली कि आज हमारे साथ उसके अस्तित्व पर भी संकट मंडरा रहा है. अब मैं आप को बताता हूँ कि हमारी बिरादरी पर लाखों सालों से हुए अत्याचार के बावजूद मैं क्यों मनुष्यों को धन्यवाद कर रहा हूँ.पता नहीं जबलपुर की महापौर सुशीला सिंह को ये सदबुद्धि कहाँ से मिली जो उन्होंने मुझे काट कर अलग कर देने के आसान रास्ते की बजाय नए ठिकाने पर नव-जीवन देने की ठान ली.विशेषज्ञों की राय ली गयी.तय किया गया कि पहले मुझे कांट-छाँट कर छोटा किया जाये. दो महीने पहले मेरी कटाई-छंटाई शुरू हुयी.कपडे धोने वाले साबुन के विज्ञापन-''दाग अच्छे है''.....की तर्ज पर मैंने भी कहा - ''जख्म अच्छे है.''

कटाई - छंटाई के बाद दो माह तक मेरे शरीर से नयी कोपलें फूटने का इंतजार किया गया.जख्म मिलाने के बावजूद जब मेरे शरीर से हरियाली फिर फ़ुट पड़ी तो फिर शुरू हुयी मेरे नव जीवन की यात्रा.ये यात्रा इतनी कठिन थी कि कई बार मुझे भी लगा- मुकाम तक पहुँचने के पहले ही इस सफ़र का अंत न हो जाये और मेरी नियति भी बिरादरी के बाकी दरख्तों की तरह सूख कर चूल्हे में जलने की न हो जाये.धन्य है जबलपुर नगर निगम के वे जुझारू कर्मचारी, जिन्होंने आखिरी समय तक हिम्मत नहीं हारी.छोटी क्रेन काम नहीं आयी तो बड़ी क्रेन मंगाई गयी.छोटा ट्रक मेरे भार से टूट गया तो बड़ा ट्रेलर मंगाया गया.हाँ, यहाँ मैं इन क्रेन और ट्रक-ट्रेलर को भी धन्यवाद दूंगा- जो भले ही आज के समय में पर्यावरण और हरियाली के सबसे बड़े दुश्मन है , जिनकी मदद के बिना मैं अपने नए मुकाम तक नहीं पहुँच सकता था.

ये यात्रा पूरे २८ घंटे की थी.पहले क्रेन की मदद से मुझे नीचे लिटाया गया और फिर मुझे दवा का लेप लगाया गया.इसके बाद ट्रेलर की पीठ पर सवार होकर मैं करमचंद चौक से करीब दो सौ मीटर की दूरी पर बने पार्क में पहुंचा.यहाँ पर मनुष्यों ने फिर मुझे यथोचित सम्मान दिया और पूजा - पाठ के बाद धरती माँ की गोद में बिठा दिया. हालाँकि अभी मैं सिर्फ एक ठूंठ ही नजर आता हूँ लेकिन मैंने अपने कानों से विशेषज्ञों की बातें सुनी है कि दो-तीन महीने में मेरे जख्मों से ही नयी कोपलें फूट पड़ेंगी.अभी तो मैं लोगों के कौतुहल का विषय हूँ.लोग ये देखने आ रहे है कि नए ठिकाने पर मैं कैसा लगता हूँ.लोग जब मुझे छूते है तो अपनापन सा लगता है.कुछ दिन पहले तक यही मनुष्य मुझे दुश्मन नजर आते थे.

मैं बूढा दरख्त अब भगवान से यही प्रार्थना करता हूँ कि कुछ दिन के लिए ही सही, मेरे शरीर में जवानी का जोश ला दे. मुझे फिर से हरा-भरा कर दे ताकि मनुष्यों द्वारा किया गया ये प्रयास व्यर्थ न जाये.कोई मुझे स्वार्थी न समझे. भगवान से ये कामना मैं अपने लिए नहीं कर रहा हूँ. मैं तो १५० बरस जी चुका हूँ. इस दुनिया में न भी रहूँ तो भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा.फर्क पड़ेगा उन दरख्तों को जिनकी नियति विकास के नाम पर बलि चढाने की है.यदि मुझमे फिर से नव-जीवन का संचार होगा तो मनुष्य अपने प्रयास पर मगन होते हुए, दरख्तों को काटने की बजाय नया ठिकाना देने के लिए सोचने लगेगा.और इसी में सृष्टि तथा मानवता की भलाई है.
..................... भविष्य में मेरे साथ क्या घटा, मैं ये भी आपको जरुर बताऊंगा....................आपका पीपल बाबा

11 comments:

इस्लामिक वेबदुनिया said...

अच्छा लिखते हो

Anonymous said...

अति सुंदर बिंब खींचा है आपने। आपके लेखन में गांभीर्य है जो उम्‍मीद जगाती है। बधाई।

रचना गौड़ ’भारती’ said...

ब्लोगिंग जगत में स्वागत है
लगातार लिखते रहने के लि‌ए शुभकामना‌एं
आपका लेख अच्छा है आगे बड़ते रहिए।
कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
http://www.rachanabharti.blogspot.com
कहानी,लघुकथा एंव लेखों के लि‌ए मेरे दूसरे ब्लोग् पर स्वागत है
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रेखा चित्र एंव आर्ट के लि‌ए देखें
http://chitrasansar.blogspot.com

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

बहुत ही सुन्दर तरीके से अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया आपने.....शुभकामनाऎं

mark rai said...

जख्म अच्छे है......
बहुत ही सुन्दर तरीके से अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किय....

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

sab kuchh good, narayan narayan

वन्दना अवस्थी दुबे said...

अच्छा है...शुभकामनायें.शब्द-पुष्टिकरण हटा ले,तो अच्छा हो.

AAKASH RAJ said...

आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है ............

मेरे मुहल्ले का नुक्कड़ said...

दोस्तों , हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया.कुछ अलग हट कर लिखने की कोशिश जारी रहेगी.
अजय त्रिपाठी

बाल भवन जबलपुर said...

Nice post Ajay ji
कृपया आप चिट्ठा जगत ब्लागवाणी के एग्रीगेशन
का भी लाभ लीजिये . ताकि आपकी ताज़ा पोस्ट हमको
तुंरत मिल सके , साथ ही सेटिंग्स में जाकर वार्ड व्हेरिफिकेशन हटा दीजिए
अशेष शुभ कामनाओं सहित
गिरीश बिल्लोरे मुकुल

prashanthindustani said...

very good dear vickey... nice scripting and nice thinking...