Wednesday, March 25, 2009

टूटे मंदिर - मस्जिद पर न हुआ दंगा

6 दिसम्बर 1992.... कभी न भूलने वाला वो दिन...... अयोध्या में कारसेवकों का जत्था कूच कर रहा था उस विवादित ढांचे की ओर , जिसे हिन्दू रामजन्म भूमि बताते है तो मुसलमान बाबरी मस्जिद.हमने वो मंजर देखा तो नहीं था लेकिन जैसा कि उस समय के गिनती के टीवी चैनल ने दिखाया और बताया था, कुछ भी शेष न छोड़ने की तैयारी थी.असल में वो रामजन्म भूमि है या बाबरी मस्जिद, हम इस विवाद में नहीं पड़ना चाहते हैं क्योंकि अभी तक देश की सर्वोच्च अदालत भी नहीं बता पायी है कि वास्तव में यहाँ था क्या? लेकिन उस विवादित ढांचे के गिरा दिए जाने से इस देश ने मुंबई बम विस्फोट के रूप में जो दर्द देखा और भोगा है, उसे भी नहीं भुलाया जा सकता है.सैकडों लोगों की जान चली गए. हजारों लोग जख्मी हुए.लोग अपाहिज हो गए.किसी का पति चला गया तो किसी का बेटा.इन दोनों घटनाओं के बाद से देश में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की नयी राजनीतिक धारा का उदय हुआ.

अब तस्वीर का दूसरा पहलू देखिये......अयोध्या से साढ़े पांच सौ किलोमीटर दूर एक शहर है जबलपुर.ये आचार्य रजनीश, महर्षि महेश योगी का शहर है. ये महान व्यंग शिल्पी हरिशंकर परसाई का शहर है.अब यहाँ की एक और खासियत बता देतें है. यहाँ एक दिन भगवान राम का मंदिर गिराया जाता है तो दूसरे दिन किसी बाबा या औलिया की मजार तोड़ दी जाती है.जैन मंदिर और गिरिजाघर भी नहीं बचे हैं इस तोड़-फोड़ से.तब तो आप कहेंगे कि इस शहर में रोज दंगे होने चाहिए.....बम धमाकों की गूँज कभी बंद ही नहीं होनी चाहिए......यहाँ तो लाशों के ढेर लग जाने थे.........किन्तु आपको बता दें कि यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.गौर करने वाली बात ये भी है कि पुलिस और प्रशासन के साथ यहाँ के लोग भी इन धर्मं स्थलों को तोड़ने में जुट जाते है.

हो सकता है कि अयोध्या और जबलपुर की तुलना किसी को पसंद न आये.लेकिन जब सवाल धार्मिक आस्था का हो तो इससे फर्क नहीं पड़ता है कि पूजा स्थल छोटा है या बड़ा.इस देश में अक्सर धार्मिक प्रतीकों से छेड़छाड़ बड़े विवाद की वजह बन जाती है. फिर जबलपुर में ऐसा क्या हुआ कि 300 से ज्यादा पूजा स्थल तोड़ दिए गए और शहर अपनी रफ्तार से या कहें कि पहले से भी तेज गति से चलने लगा.इसका श्रेय जाता है यहाँ के अमन पसंद और समझदार नागरिकों को. वैसे तो सड़क या सार्वजनिक स्थानों पर बने मंदिर-मजार या अन्य पूजा स्थल सबको तकलीफ देते थे किन्तु धार्मिक मामला समझ कर कोई कुछ कहता नहीं था.एक सामाजिक कार्यकर्ता सतीश वर्मा को सड़क पर अतिक्रमण का रूप लेकर खड़े ये पूजा स्थल अखरने लगे तो उसने हाई कोर्ट में जनहित याचिका लगा दी.सतीश वर्मा ने खुद मेहनत करके 566 पूजा स्थल चिन्हित किये जो यातायात में बाधा उत्पन्न कर रहे थे.

इस विषय पर हाई कोर्ट भी गंभीर हो गया और उसने इन सभी धार्मिक स्थलों को हटाने के निर्देश दे दिए.लेकिन कोर्ट के आदेश से प्रशासन की पेशानी पर बल पड़ गए.क्योंकि उसके लिए एक तरफ कुआँ तो दूसरी तरफ खाई वाली स्थिति हो गयी.यदि वो मंदिर-मजारों पर सीधे बुलडोजर चला देता तो शहर में हालात बिगड़ सकते थे और यदि कार्यवाई नहीं करता तो फिर कोर्ट का कोड़ा उसे नहीं छोड़ता.अपने अधिकारों के रौब में कोई गलत फैसला लेने की बजाय उसने समझदारी से काम लिया.सभी धर्म के गुरुओं के साथ आपसी समझ बना कर प्रशासन ने सा-सम्मान पूजा स्थलों को हटाने की कार्यवाई एक बार जो शुरू की तो वो पूरे देश के लिए मिसाल बन गयी.सड़क और सार्वजनिक उपयोग के स्थानों में बाधक बन रहे इन पूजा स्थलों को हटाने की करवाई पिछले दो साल से चल रही है और इसमें न तो हिन्दू को आपत्ति है और न ही मुसलमान को.अब तक 302 धार्मिक अतिक्रमण हटाये जा चुके है.इसमें मंदिर और मजार के साथ दो ईदगाह ,एक चर्च तथा एक जैन मंदिर का अतिक्रमण भी शामिल है.बाकी के धर्मं स्थल हटाने की कार्यवाई भी निरंतर चल रही है.

मैंने जबलपुर की पहचान बताने के लिए महान व्यंग शिल्पी हरिशंकर परसाई जी का भी जिक्र किया था.उनके पास तो अयोध्या के विवाद का हल भी था . वे कहते थे न मंदिर बनाओ और न मस्जिद, वहां .........बना दो जिसका उपयोग सब कर सकें.लेकिन वे ठहरे व्यंग के चितेरे, सो उनका नजरिया विवाद को हलके ढंग से लेने का था, तभी वो हर बात को मजाकिया अंदाज में कहते थे.आज हरिशंकर परसाई जी जीवित होते तो जबलपुर में मंदिर-मस्जिद हटाने की कार्यवाई पर कोई न कोई रचना जरुर लिखते.जबलपुर के लोग भी अयोध्या को बड़ा गूढ़ सन्देश दे रहे है.वे कह रहे है - मानवता और लोकहित किसी भी पूजा स्थल से बड़े नहीं है.

2 comments:

बाल भवन जबलपुर said...

क्या बात है
सच इतनी गंभीरता से
ब्लागिंग

Satish Chandra Satyarthi said...

बहुत अच्छा आलेख लिखा है आपने.